बकाया फीस को लेकर विवाद के बाद अभिभावकों का डीपीएस द्वारका पर छात्रों को परेशान करने का आरोप

नई दिल्ली:

दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) द्वारका के कम से कम 20 छात्रों के अभिभावकों ने संस्थान पर उनके बच्चों को कक्षाओं में जाने से रोकनेे और बकाया फीस के लिए बच्चों के नाम अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का आरोप लगाया है।

कुछ अभिभावकों के अनुसार, संशोधित शुल्क का भुगतान करने से इनकार करने के बाद यह कार्रवाई की गई। उनका कहना है कि शिक्षा निदेशालय (डीओई) के मानदंडों का पालन किए बिना शुल्क बढ़ाया गया है।

अभिभावकों ने कहा कि बच्चों के नाम का सार्वजनिक प्रदर्शन उनके बच्चों की निजता और गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

एक अभिभावक ने कहा, स्कूल ने बच्चों की प्रतिष्ठा को खराब किया है और उन्हें डिफॉल्टर कहा है, जबकि अभिभावकों ने पूरी फीस का अग्रिम भुगतान कर दिया है।

अभिभावकों ने स्कूल पर संशोधित फीस की मांग करके उनके बच्चों को परेशान करने का आरोप लगाया। एक अन्य ने कहा, हमने 2021 से कई शिकायतें दर्ज कराई हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने स्कूल प्रबंधन पर 2022 में बच्चों (जिनकी फीस बकाया है) को स्कूल में प्रवेश करने से रोकने के लिए बाउंसर तैयार करने का भी आरोप लगाया।

एक अभिभावक ने आईएएनएस को बताया, उन्होंने (स्कूल प्रबंधन ने) स्कूल बसों में बाउंसर भेजे, ताकि बच्चे बस में चढ़ न सकें। किशोर लड़कियां बाउंसरों के साथ यात्रा करने में असहज महसूस करती हैं, जो सुरक्षा से ज्यादा खतरा हैं।

एक अन्य अभिभावक ने कहा, शिक्षा विभाग ने अभी तक मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है और अपने आदेश को लागू करवाने में विफल रहा है। शिक्षा विभाग के नामित लोगों को स्कूल में प्रवेश की भी अनुमति नहीं है और वे मूकदर्शक बने हुए हैं।

एक छात्र के पिता ने कहा, हमारे पास स्कूल की ज्यादतियों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि यह मामला हमारे बच्चों के भविष्य से जुड़ा है।

एक अन्य अभिभावक ने कहा, हमने शिक्षा विभाग और स्कूल के खिलाफ अदालत का रुख किया और अदालत ने आदेश दिया कि अभिभावकों को संशोधित शुल्क का 50 प्रतिशत भुगतान करना होगा और जिन छात्रों के नाम काट दिए गए थे, उन्हें तुरंत बहाल किया जाना चाहिए, लेकिन स्कूल ने अदालत के आदेश का कोई सम्मान नहीं किया।

उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि स्कूल के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन इतने शक्तिशाली हैं कि कोई अदालत या कोई विभाग उनकी मनमानी पर रोक नहीं लगा सकता।

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