ग्राम चपले में पर्चा वाले बाबा का उद्घोष – सनातन का ध्वज विश्व में लहराने का संकल्प

  • धर्म, तपस्या और जनसेवा की त्रिवेणी में डुबकी लगाते भक्त

रायगढ़। आध्यात्मिक नगरी चित्रकूट की गोद में जन्मे पंडित श्री अजय उपाध्याय जी, जिन्हें आज लोग श्रद्धा से “पर्चा वाले बाबा” के नाम से जानते हैं, इन दिनों छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्राम चपले में श्रीराम कथा और दिव्य दरबार के आयोजन के लिए पधारे हुए हैं। 12 मई से 19 मई 2025 तक चलने वाली इस भव्य कथा का आयोजन किया गया है।

चित्रकूट की गोद से निकले संत की जीवनगाथा:
आध्यात्मिक धरा चित्रकूट की गोद में जन्मे और सनातन धर्म की अलख जगाने वाले संत, पंडित श्री अजय उपाध्याय जी आज न केवल अपने क्षेत्र बल्कि देशभर में “पर्चा वाले बाबा” के नाम से विख्यात हो चुके हैं। मां संतोषी और हनुमान जी के परम भक्त पंडित जी बचपन से ही अध्यात्म के रंग में रंगे हुए हैं।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के ग्राम पहाड़ी में जन्मे अजय उपाध्याय जी का जीवन शुरू से ही संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उनके भीतर धर्म और साधना की जो लौ जली, वह आज एक रौशनी बन चुकी है। माता श्रीमती बिलासिनी उपाध्याय जी और पिता श्री देवदत्त उपाध्याय जी के संरक्षण में पले-बढ़े महाराज जी को धार्मिक संस्कार घर से ही मिले। उनके पिता भी पिछले 35 वर्षों से मां संतोषी और हनुमान जी की सेवा में लगे हुए हैं। परिवार की कठिनाइयों ने महाराज जी को तप, सेवा और समर्पण का असली अर्थ सिखाया।

महज 7 वर्ष की आयु में अध्यात्म से जुड़ने वाले अजय जी ने 2017 में अपनी पहली श्रीमद भागवत कथा का आयोजन कर आध्यात्मिक प्रवचन की शुरुआत की। इसके बाद उनका जीवन जनसेवा, धर्म प्रचार और सनातन संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य में समर्पित हो गया।शिक्षा की बात करें तो महाराज जी ने चित्रकूट स्थित श्री राम संस्कृति महाविद्यालय गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त की। यह शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, वेद-पुराण, धर्मशास्त्र और जीवन व्यवहार की गहराई को आत्मसात किया।

हाल ही में आयोजित कथा ग्राम चपले में एक प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों ने महाराज जी से विशेष चर्चा की। बातचीत के दौरान महाराज जी ने बताया कि वे केवल कथा वाचक नहीं, बल्कि जन-जन के कष्टों को समझने और समाधान करने वाले एक माध्यम हैं। उनकी पहचान “पर्चा वाले बाबा” के रूप में इसलिए बनी क्योंकि वह धर्मग्रंथों और तप से प्राप्त दिव्य ज्ञान के आधार पर लोगों की समस्याओं का समाधान पर्चे के माध्यम से करते हैं। यह पर्चा न सिर्फ आस्था से जुड़ा है, बल्कि विश्वास का वह माध्यम बन चुका है, जिससे हजारों लोग राहत पा चुके हैं।

पत्रकारों से विशेष बातचीत में पंडित जी ने कहा:
“मेरा उद्देश्य केवल देश में ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म का परचम लहराना है। लोगों को उनके मूल धर्म से जोड़ना, उन्हें धर्म के मर्म से अवगत कराना और हर व्यक्ति के जीवन में अध्यात्म के प्रकाश का संचार करना ही मेरा संकल्प है। “उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में जब लोग भौतिकता की ओर तेजी से भाग रहे हैं, ऐसे में धर्म, भक्ति और संस्कृति का संरक्षण और प्रचार अत्यंत आवश्यक हो गया है। सनातन धर्म कोई पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि जीवन जीने की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति है, जो मनुष्य को भीतर से मजबूत बनाती है।

“पर्चा वाले बाबा” अब एक नाम नहीं बल्कि आस्था, सेवा और सनातन धर्म के प्रति संकल्प का प्रतीक बन चुके हैं। चित्रकूट की भूमि पर जन्मे इस संत का जीवन उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों से लड़ते हुए भी अपने भीतर के धर्म और उद्देश्य को जीवित रखते हैं।