- विभागीय छात्राओं रूखमणी राठिया और हेमलता बैगा का भी जन्म दिवस मनाएं
खरसिया। महाविद्यालय खरसिया का हिन्दी विभाग रंग त्यौहार होली के अवसर पर भी कवि जयंती को नहीं भूला। एम ए हिन्दी के पाठ्यक्रम में समाहित छायावादी कवयित्री आधुनिक काल की मीरा, वेदनामय महादेवी वर्मा की जयंती को हिन्दी विभाग के छात्रों ने होली के अगले दिवस दिनांक 26 मार्च 2024 को विभाग में पूर्ण सादगी के साथ मनाया।
विभागाध्यक्ष हिन्दी डॉ० रमेश टण्डन, प्रो० कुसुम चौहान एवं प्रो० अंजना शास्त्री की गरिमामय उपस्थिति एवं उद्बोधन में छात्र रोहित चन्द्रा, छाया डनसेना, छाया राठौर, अमनराज, रूखमणी राठिया, हेमलता बैगा, जयप्रकाश, पंकज डनसेना, देविका राठिया, लीलाधर राठिया, भूपेन्द्र राठिया, शशिकला महंत, गौरव राठौर, अंचल पटैल आदि ने व्याख्यानपूर्ण जयंती का ज्ञान लाभ लिया।
संयोग से उक्त तिथि को एम ए चतुर्थ सेमेस्टर हिन्दी की छात्राएँ रूखमणी राठिया और हेमलता बैगा का जन्म दिवस था। दोनों बालिकाओं का जन्म दिन भी अत्यन्त हर्ष के साथ केक काटकर मनाया गया। अपने उद्बोधन में प्रो० शास्त्री ने महादेवी वर्मा के सन्यासी जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि कई पीढ़ियों के बाद इनका जन्म होने के कारण परिवार में हर्ष व्याप्त था, इसीलिए इनका नाम देवी अर्थात् महादेवी रखा गया।
डॉ० टण्डन ने अपने वक्तव्य में कहा महादेवी वर्मा के प्रियतम हल्की-सी झलक दिखाकर चले जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप इनका मन मधुमय पीड़ा में डूबकर रह जाता है- “इन ललचाई आँखों पर, पहरा था जब ब्रीड़ा का, साम्राज्य मुझे दे डाला, उस चितवन ने पीडा का।” अपनी प्रथम कृति नीहार’ के संबंध में महादेवी लिखती हैं कि ‘नीहार’ के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मयी वेदना उमड़ आती थी, जैसी बालक के मन में दूर दिखाई देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर और सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।” कवयित्री के लाज के बोल भी नहीं फूटे थे, प्रियतम के स्वरूप का बोध भी नहीं हुआ था; इस दशा में वियोग की पराकाष्ठा पर पहुँचकर कवयित्री को पूरा विश्व वेदनामय प्रतीत होने लगा था – “अपने इस सूनेपन की, मैं हूँ रानी मतवाली, प्राणों का दीप जलाकर, करती रहती दीवाली ।”
प्रथम कृति ‘नीहार में प्रत्येक वस्तु कुहासे से ढकी होने के कारण धूमिल और अस्पष्ट होती है। किन्तु प्रातःकाल हो जाने से ‘रश्मि’ के प्रकाश में वही वस्तु प्रकट हो जाती है। इस कृति में कवयित्री को वेदना से विशेष आत्मीयता हो जाती है। रश्मि तक आते-आते विरह-वेदना ही कवयित्री का अंतिम लक्ष्य बन जाती है। ‘रश्मि’ के बाद की दो कृतियों ‘नीरजा’ और ‘सांध्यगीत’ का स्वर एक जैसा है। इनमें वेदना से आनन्द की अनुभूति होने लगती है। कवयित्री दुःख के रूप में ही प्रियतम का आह्वान करती है – “तुम दुःख बन इस पथ से आना ? शूलों में नित मृदु पाटल-सा, खिलने देना मेरा जीवन, क्या हार बनेगा वह, जिसने सीखा हृदय को बिंधवाना।” महादेवी ने वेदना को आनन्द से सर्वथा ऊँचा स्थान दिया है। ‘सांध्यगीत’ में महादेवी का साथी केवल अन्धेरा ही है “शून्य मेरा जन्म था, अवसान है केवल सवेरा।”