जांजगीर-चांपा नगरी के समीपस्थ ग्राम पुटपुरा में कथा के पांचवें दिन कथा प्रवक्ता पंडित दीपककृष्ण महाराज ने प्रभु की बाल-लीलाओं का किया सुन्दर वर्णन

जांजगीर, 01 फरवरी। जाज्यवल्य देव की पावन धरा जांजगीर-चांपा नगरी के समीपस्थ ग्राम पुटपुरा में राठौर परिवार द्वारा संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा के दौरान 30 जनवरी को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाने के बाद कथा के पांचवे दिन 31 जनवरी को छत्तीसगढ़ के प्रख्यात कथा प्रवक्ता पंडित दीपककृष्ण महाराज ने प्रभु की बाल-लीलाओं का बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया।

कथा प्रसंग को प्रारम्भ करते हुए कथा प्रवक्ता पंडित दीपककृष्ण महाराज ने कहा की जिनको काम प्रिय है वे प्रभु की कथा को नहीं सुन सकते और जिनको श्याम प्रिय है वे अपना सारा काम छोड़कर प्रभु की कथा सुनने के लिए पहुँचते हैं। मानव जीवन का एक सच है और उस सच का नाम है मृत्यु। जब हमें पता है की हमारी मृत्यु निश्चित है हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जायेंगे तो क्यों न हम इस जीवन को धर्म के कार्यों में लगायें। ताकि मरने के बाद जब हम ऊपर जाएँ तो प्रभु हमें पहचान सकें।

कथा प्रवक्ता पंडित दीपक कृष्ण महाराज ने कहा कि हमें भगवान की भक्ति बिना कोई दिखावा किए करनी चाहिए, क्योंकि जब पूतना अपना रूप बदलकर कृष्ण भगवान को मारने आई तो प्रभु ने अपनी आँखें बंद कर ली थी। उसी प्रकार जब हम किसी भी प्रकार का दिखावा करके भगवान की वंदना करते हैं तो भगवान हमारी वंदना को स्वीकार नहीं करते। अगर हम सच्ची श्रद्धा और बिना कोई दिखावा किए प्रभु की भक्ति करते हैं तो प्रभु हमें अपनी छ्त्रछाया में लेकर हमारे जीवन के साथ-साथ हमारी मृत्यु को भी सवांर देते है।

पंचम दिवस के कथा प्रसंग में कथा प्रवक्ता श्री महाराज ने बताया कि जब ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गिरिराज जी की पूजा शुरू कर दी तो इंद्र ने कुपित होकर ब्रजवासियों पर मुसलाधार बारिश की तब कृष्ण भगवान ने गिरिराज को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र का मान मर्दन किया। तब इंद्र को भगवान की सत्ता का अहसास हुआ और इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी व कहा हे प्रभु मैं भूल गया था की मेरे पास जो कुछ भी है वो सब कुछ आप का ही दिया हुआ है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज हमारे पास जो कुछ भी है वो सब कुछ हमें भगवान का ही दिया हुआ है, उस पर हमें अभिमान नहीं बल्कि भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करना चहिए।

अंत में कलयुग की प्रधानता बताते हुए कथा प्रवक्ता श्री महाराज ने कहा “कलयुग महि एक पुन्य प्रतापा – मानस पुन्य होय नहीं पापा” अथार्त कलयुग में किया हुआ मानसिक पुन्य तो लगता है पर पाप नहीं लगता। आज के कथा प्रसंग में कथा प्रवक्ता श्री महाराज ने प्रभु की नटखट बाल लीलाओं को बहुत ही सुन्दर ढंग सभी भक्तों को श्रवण कराया और आज ही सभी भक्तों ने गिरिराज भगवान की सुन्दर झांकी के दर्शन किए व गोवर्धन की मानसिक प्ररिक्रमा भी लगाई।