- अनिल पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार
रायगढ़। शहर के अंदर वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए ऑक्सीजोन का निर्माण एक अच्छा कॉन्सेप्ट है। इसका कोई विरोध नहीं करने वाला है लेकिन सवाल यह है कि शहर के अंदर छातामुड़ा चौक से ढिमरापुर चौक के बीच तो कोतरा रोड से चक्रधर नगर के बीच 15 से 20 एकड़ का क्या कोई सरकारी प्लाट उपलब्ध है जहां हजारों पेड़ लगाए जा सकें?फव्वारे और आर्टिफिशियल झरना बनाया जा सके ,घूमने के लिए फुटपाथ बनाया जा सके? पर हाँ मध्य शहर से दूर इंदिरा विहार और रोज गार्डन ऐसी जगह जरूर है जिसे ऑक्सीजोन के रूप में विकसित किया जा सके।
वर्षो पहले 80 के दशक में ऐसा ही एक कॉन्सेप्ट तत्कालीन नगरपालिका के प्रशासक प्रभात पाराशर ने बड़का तालाब को पाटकर बनाया था जहां पर संजय कॉम्प्लेक्स बन गया और इसके बदले में चक्रधर नगर में कमला नेहरू पार्क बना दिया गया। एक वो भी दौर था जब केलो पुल के उस पार चक्रधर नगर चौक तक अमलतास के पेड़ों की बहार हुआ करती थी जो सड़क चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गए। इसी तरह शहर के अंदर और बाहर जाने वाली सड़को के किनारे शहर की सीमा के अंदर नीम, पीपल, बरगद, शिरीष के विशाल वृक्ष हुआ करते थे यह भी सड़को के चौड़ीकरण के लिए बलिदान हो गए। सिर्फ कहने से काम नहीं चलता पूरा प्रारूप बताना पड़ता है तब कहीं जाकर यकीन होता है। लगे हाथों, स्मृति वन, कृष्ण कुंज/वाटिका योजना और छठ घाट की तरफ के कथित ऑक्सी ज़ोन की चर्चा भी होनी चाहिए।
पिछले कुछ महीने पूर्व रायगढ़ कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने जूर्डा ऑक्सीजोन का निरीक्षण कर प्रोजेक्ट की तारीफ करते हुए हुए कहा था कि “पेड़ आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी असली धरोहर हैं। वृक्षारोपण के फायदे सिर्फ एक पीढ़ी को नहीं बल्कि आने वाले कइयों सालों तक मिलते रहते हैं।” बता दें कि मियावाकी पद्धति से कम दूरी पर लगाए गए पौधे अब बढ़कर एक जंगल का अहसास देते हैं। इस पद्धति से होने वाले वृक्षारोपण में पौधे आपस में काफी कम दूरी में रोपे जाते हैं। इससे कम स्थान पर बहुत से पौधे लगाकर वन तैयार किए जा सकते हैं।