
रायगढ़, 16 नवंबर। सारंगढ़ विकासखंड में लाइम स्टोन खदान का विरोध अब उग्र रूप लेता दिख रहा है। ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित कपिस्दा क्षेत्र की प्रस्तावित खदान के लिए 17 नवंबर को होने वाली जनसुनवाई को ग्रामीण लगातार निरस्त कराने की मांग कर रहे हैं। मगर उनकी मांग पर प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट निर्णय न आने के बाद अब पांचों प्रभावित गांव—लालाधुरवा, जोगनीपाली, धौराभांठा, कपिस्दा और सरसरा—के लोग सड़क पर उतरकर विरोध तेज कर चुके हैं।
जनसुनवाई रुकवाने ग्रामीणों की किलेबंदी
जनसुनवाई को रोकने की ठान चुके ग्रामीणों ने रविवार से ही कपिस्दा गांव की ओर जाने वाले कच्चे मार्गों पर जगह-जगह गड्ढे कर दिए हैं, ताकि प्रशासन या कंपनी के लोग गांव तक न पहुंच सकें। महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और युवा—सभी एकजुट होकर गांव की सीमाओं पर मोर्चा संभाल चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब वे अपनी जमीन किसी भी कीमत पर कंपनी को देना ही नहीं चाहते, तो जनसुनवाई कराने का औचित्य ही क्या रह जाता है।
कलेक्टर कार्यालय का घेराव भी बेअसर
खदान क्षेत्र से प्रभावित गांवों के लोगों ने इससे पहले कलेक्टर कार्यालय का घेराव कर जनसुनवाई निरस्त करने की मांग उठाई थी। लेकिन उनकी बातों पर ध्यान न दिए जाने से ग्रामीणों में गहरी नाराज़गी है। प्रशासन की चुप्पी के बाद अब उन्होंने अपने तरीके से विरोध का रास्ता चुना है।
कपिस्दा बना छावनी, पुलिस बल तैनात
दूसरी ओर, पुलिस प्रशासन ने कपिस्दा को पूरी तरह छावनी में बदल दिया है। जनसुनवाई किसी भी हालत में करवाने के इरादे से पुलिस बल रविवार से ही बड़ी संख्या में गांव के चारों ओर तैनात है। रास्ते बंद होने के बावजूद पुलिस अपने स्तर पर वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रही है।
“जमीन नहीं देंगे, जनसुनवाई नहीं होने देंगे”
ग्रामीणों का साफ कहना है कि उनकी जमीन ही उनकी आजीविका है। वे अपनी जमीन उद्योग को देकर उजड़ना नहीं चाहते। उनका कहना है— “जब जमीन देनी ही नहीं है, तो जनसुनवाई करने का मतलब क्या? हमारी सहमति बिना यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।”
तनावपूर्ण माहौल, टकराव की आशंका
ग्रामीणों के बढ़ते आक्रोश और पुलिस की तैयारी को देखते हुए क्षेत्र में तनाव का माहौल बना हुआ है। सोमवार को जनसुनवाई के समय दोनों पक्षों के बीच टकराव की आशंका जताई जा रही है।
हालांकि प्रशासन का कहना है कि जनसुनवाई पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है और इसे शांतिपूर्ण तरीके से करवाने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं ग्रामीणों का रुख स्पष्ट है—जनसुनवाई रुकने तक विरोध जारी रहेगा।

