खरसिया में धूमधाम से मनाया गया विश्व मूलनिवासी दिवस, आदिवासी संस्कृति और अधिकारों पर जोर

खरसिया, 9 अगस्त 2025: विश्व मूलनिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी अंचल बरगढ़ खोला के ग्राम बर्रा में उत्साह और उल्लास के साथ ब्लॉक स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज के अधिकारों, संस्कृति और सुरक्षा को बढ़ावा देना था। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुसार, विश्व भर में जनजातीय समुदाय आज भी गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन मुद्दों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1994 में 9 अगस्त को विश्व स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का निर्णय लिया था।

बर्रा के देव स्थल प्रांगण में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ हुई। आदिवासी समाज के महापुरुषों के चित्रों पर पूजा-अर्चना और माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। आयोजन समिति ने मुख्य अतिथि प्रेम सिंह राठिया, विशिष्ट अतिथि ललित राठिया, ग्राम गोटिया के चंद्रेश राठिया, उमा राठिया, सरपंच टिकेश्वरी राठिया, रामदयाल राठिया, जरही सिंह राठिया, महासचिव दिलेश्वर सिंह, नरहरि सिंह, मारी लाल राठिया, कविता राठिया, डिग्री लाल सिदार, श्यामलाल, जगत वीर सिंह राठिया, भैया लाल राठिया, मीना मरावी, अनुज नेताम, मुनीष राठिया, दिनेश राठिया, रेशम लाल राठिया, चेतन राठिया सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों का पीले चावल और तिलक के साथ स्वागत किया।

मुख्य अतिथि प्रेम सिंह राठिया और अन्य वक्ताओं ने अपने संबोधन में आदिवासी समाज के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए सजग रहने और आदिवासी हितों व अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समाज को एकजुट होने का आह्वान किया। वक्ताओं ने कहा कि यह दिवस न केवल आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने का अवसर है, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने का भी माध्यम है।

कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने सभी का मन मोह लिया। आदिवासी समाज के बच्चों और युवाओं ने लोक कला, गीत-संगीत और परंपराओं से सजी रंगारंग प्रस्तुतियों के माध्यम से अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया। इन प्रस्तुतियों ने उपस्थित लोगों को आदिवासी संस्कृति की गौरवशाली परंपराओं से रूबरू कराया।

यह आयोजन न केवल आदिवासी समाज की एकता और संस्कृति का उत्सव था, बल्कि उनके अधिकारों और हितों के प्रति जागरूकता फैलाने का एक प्रभावी मंच भी साबित हुआ। क्षेत्र के लोगों ने इस अवसर पर एकजुट होकर अपनी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा का संकल्प लिया।