- राखी के त्योहार को सामण की सलूमण के नाम से भी जाना जाता है
खरसिया। खरसिया में हर्ष उल्लास से मनाया गया रक्षाबंधन का त्योहार यह विशेष दिन भाई-बहन के बीच अटूट और पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस शुभ दिन पर बहनें भाई की दीर्घायु की कामना करते हुए उनकी कलाई में राखी बांधती हैं। तिलक करती है और उनकी आरती उतारती हैं। भाई गिफ्ट देकर बहन का आशीर्वाद लेते हैं और उनकी जीवनभर रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन के त्योहार पर तीन दिनों से बाजार में भरपूर रौनक रही लोगों ने कपड़े और ज्वेलरी की भरपूर खरीदी की सबसे ज्यादा भीड़ मिठाई की दुकानों पर रही। रक्षाबंधन भाई और बहन के प्रेम का पवित्र बंधन है। यह त्योहार त्याग और पवित्रता का संदेश देता है। हर साल सावन मास में पूर्णिमा को मनाया जाने वाले इस त्योहार से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इस त्योहार को हरियाणा राजस्थान के मारवाड़ी समाज में सामण की सलूमण के नाम से भी जाना जाता है।
अमरनाथ की धार्मिक यात्रा रक्षाबंधन के दिन ही पूर्ण होती है। इस त्योहार पर वृक्षों को भी राखी बांधी जाती है। माना जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। इस त्योहार से महाभारत की कथा भी जुड़ी हुई है। युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। माता कुंती ने पौत्र अभिमन्यु और द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी। एक बार राजा इंद्र और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें देवराज इंद्र की पराजय होने लगी। तब देवराज की पत्नी शुची ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था।
इस रक्षा सूत्र के कारण ही देवराज इंद्र की विजय हुई। मां यमुना ने अपने भाई यमराज को रक्षासूत्र बांधा था। राखी को हमेशा दाहिनी कलाई पर बांधा जाता है। इस त्योहार पर बहनें अपने भाई को राखी बांधकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है। माना जाता है कि अगर शत्रु परेशान कर रहा है तो इस त्योहार पर वरुण देवता की पूजा करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। इस त्योहार को गुरु और शिष्य परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है। माना जाता है कि यह त्योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्यु से जुड़ा है। इसलिए रक्षासूत्र को सबसे पहले गणेश जी को बांधने के बाद श्रवण कुमार को भी अर्पित किया जाता है।