नए चेहरों की कमी या सियासी रणनीति. वरिष्ठ नेताओं को चुनाव में ज्यादा तरजीह क्यों दे रही कांग्रेस?

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी ने कुछ दिन पहले अपनी 195 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की थी और शुक्रवार को कांग्रेस ने भी 39 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की है। खास बात यह है कि इसमें 4 महिलाएं, 15 सामान्य, 24 एससी-एसटी ओबीसी है। खास बात यह है कि 39 में से केवल 12 प्रत्याशी हीं है जिनकी उम्र 50 साल से कम हैं। यह बताता है कि पार्टी अपने ओल्ड गार्ड्स यानी पुराने नेताओं पर ज्यादा फोकस कर रही है। कांग्रेस पार्टी के 39 लोकसभा प्रत्याशियों की बात करें तो इस लिस्ट में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम भी है। वे वायनाड से ही सांसद थे और एक बार फिर इसी सीट से चुनाव लड़ने वाले हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल से लेकर शशि थरूर का भी इस लिस्ट में नाम है।

कांग्रेस ने पहली लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री और दो पूर्व मंत्रियों को मैदान में उतार रखा है। शिव डहरिया और ताम्रध्वज साहू को टिकट देकर जातिगत समीकरण को साधने के प्रयास किए हैं, साथ ही जिन बड़े विभागों को कांग्रेस के मंत्रियों ने संभाला था, उन्हें भी अब बीजेपी के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी दी गई है। पार्टी ने राजेंद्र साहू को टिकट देकर यह भी बता दिया है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की पसंद को छत्तीसगढ़ में तरजीह दी गई है। राजेंद्र के कारण ताम्रध्वज साहू को महासमुंद शिफ्ट होना पड़ा था।

पार्टी के लिए साख बचाने का चुनाव

खास बात यह भी है कि पार्टी ने पहली लिस्ट में केरल की 20 में से 16 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए यह चुनाव ज्यादा अहम है क्योंकि वह पिछले दो चुनावों से लगातार 100 से भी कम सीटें लाई है। ऐसे में यह चुनाव उसके लिए ‘करो या मरो’ वाली स्थिति का चुनाव साबित हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी चुनाव की अहमियत को देखते हुए पार्टी ने उन नेताओं को जबरन चुनाव में उतारा है जो कि चुनाव लड़ने से परहेज कर रहे थे। खास बात यह है कि राहुल गांधी के अलावा वायनाड, शशि थरूर, केसी वेणुगोपाल, को टिकट दिया गया है। इसके अलावा ज्योत्सना महंथ और डीके सुरेश को भी उतारा गया है। कांग्रेस ऐसे नेताओं को चुन-चुन कर टिकट दे रही है जो कि राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश तक में अहम पहचान रखते हैं।

इन नेताओं पर भी बन रहा चुनाव लड़ने का दबाव

वरिष्ठ नेताओं को चुनावी मैदान में उतारना बताता है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह से लेकर जीतू पटवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी लोकसभा चुनाव लड़ना ही होगा। खास बात यह है कि राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी जोधपुर से और सीपी जोशी पर जयपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ने का दबाव बनता नजर आ रहा है। इसी तरह पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भी लड़ सकते हैं।

हरियाणा में इसी साल विधासनभा चुनाव है और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पूरा ध्यान विधानसभा चुनावों की तरह है लेकिन खबरें हैं कि साख बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस उन्हें भी लोकसभा चुनाव में उतार सकती है। कुछ इसी तरह रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी सैलजा से लेकर किरण चौधरी भी चुनाव लड़ सकती है। वहीं महाराष्ट्र में पार्टी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले से लेकर विजय वडेट्टीवार, बाला साहेब थोराट, माणिकराव ठाकरे, कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक और पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को लोकसभा चुनाव में पार्टी उतारने के संकेत दे रही है।

प्रतिष्ठा की है लड़ाई

अब सवाल यह है कि कांग्रेस पार्टी वरिष्ठ नेताओं पर ज्यादा विश्वास क्यों दिखा रही है, क्या पार्टी के पास नेताओं की कमी है? या कोई रणनीति भी है। पार्टी को पता है कि अगर इस चुनाव में भी अगर पुराना प्रदर्शन ही दोहरा दिया, तो उसके लिए सर्वाइवल ही मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए वह नए नेताओं को उतारने से पूरी तरह परहेज कर रही है। पार्टी उन नेताओं पर फोकस कर रही है, जो कि कांग्रेस का बड़ा नाम रहे हैं और अपने अपने इलाकों समेत आस पास की सियासत में भी असर डालने में सक्षम हो सकते हैं। इसीलिए कांग्रेस ऐसे ही नेताओं पर जोर लगा रही है जो कि नाम के दम पर भी जीतने की क्षमता लड़ सकते हों।

यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी का वरिष्ठ नेताओं पर भरोसा जताने का यह फैसला उसके लिए पॉजिटिव हो सकता है, या लंबे वक्त से विवादों में घिर रहे इन्हीं में से कई बड़े नाम पार्टी को और भी बड़ा झटका दे सकते हैं।