शासकीय महाविद्यालय खरसिया में छत्तीसगढ़ी भाषा दिवस पर भव्य कवि सम्मेलन

खरसिया। शासकीय महाविद्यालय खरसिया का हिन्दी विभाग विभिन्न दिवसों एवं साहित्यकारों की जयंती मनाने में पूरे अंचल में प्रसिद्ध है। इस क्रम में छत्तीसगढ़ी भाषा दिवस के अवसर पर परिषद प्रभारी प्रो० डी के संजय एवं छात्र पदाधिकारी लीलाधर राठिया, राजेश्वरी, बुबुन घृतलहरे, देवलता साहू एवं सदस्य अनिषा घृतलहरे, भूपेन्द्र राठिया, पंकज डनसेना, श्रेया सागर, डिगेश्वरी दर्शन आदि के व्यवस्थापन व डॉ० आर के टण्डन के निर्देशन में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। छत्तीसगढ़ महतारी की पूजा के पश्चात् राज गीत पिंकी साहू व हेमलता सिदार ने गाया। कार्यक्रम के दौरान श्रेया सागर और बुबुन घृतलहरे ने छत्तीसगढ़ महतारी का अत्यंत मनमोहक रूप धारण किया था।

प्रो० कुसुम चौहान के कुशल मंच संचालन में अतिथि स्वागत उपरान्त छत्तीसगढ़ी में मधुरलय युक्त काव्यपाठ का आनन्द छात्रों ने लिया। सर्वप्रथम डी के संजय ने सभी कवियों का परिचय दिया। वरिष्ठ कवि मनमोहन सिंह ठाकुर ने बात बात म बात बिगड़त हे, नई दिखे अब गाड़ा गाड़ी, ढेकी जाता जतरी, सबो बिहा निपट जाथे बिन हड़िया दोना पतरी; दो दिन के पहुना पाही, एकर ल जादा रही तेकर इजत जाही, धर ले नांगर धर ले तूतारी, जय जोहार जय छत्तीसगढ़ की मनमोहक प्रस्तुति दी। गुलाब सिंह कँवर गुलाब ने छत्तीसगढ़ के चरण म शीष नवाथन गा, मोर गाँव हे टाटा खढ़ताल, खाके निकले चटनी बासी पाताल, भरभर मुँहु में भरे गुटखा, मुड़ी म खपलव सुरक्षा बर हेल्मेट, चलो संगी चलो आघू बढ़व, जंगल ल झन काटव संगी पर सस्वर गीत गाया।

कवयित्री किरण शर्मा ने नान्हे नान्हे नोनी मोरे निन्दिया तैं आजा, बैरी कोयली कूकी मोरे अंगना और शुभदारानी सिंह राठौर ने मोर छत्तीसगढ़ के माटी, तोला जुग जुग ले प्रणाम, इंहा के पंथी, इंहा के सुआ, इंहा के करमा का कईबे पर शानदार प्रस्तुति दी। नवोदित कलमकार जयंत डनसेना कल्चुरी ने इही हमर जिनगानी हे, छलकत आँसू के का जुबान रे संगी पर मौलिक गीत सुनाया। हिन्दी विभाग की छात्रा बुबुन ने हमर सियान पर और टिकेश्वरी पटेल ने मानव समाज की वर्तमान परिस्थिति और गांधी पर कविता पाठ किया। प्रो० जयराम कुर्रे ने हमारे सपने बिखरने लगते हैं पर गजल कहते हुए कहा – मसला नींद और रातों का है जो हल नहीं होता और मेरा ये ख्वाब कभी मुकम्मल नहीं होता, कुछ जिंदगी भी हालत-ए-खराब करती हैं, हर कोई प्यार में पागल नहीं होता। पूर्व विकास खण्ड स्रोत समन्वयक शिक्षा व वर्तमान एनजीओ च्यवन पाण्डेय ने भी प्रेरक उद्बोधन छात्रों के समक्ष दिया।

विभागाध्यक्ष हिन्दी डॉ० आर के टण्डन ने तैं मोर गुरतुर बोली पर एक कविता सुनाई हरियर मिर्चा खोंट के, गोंदली बासी पिए पसिया। धान लुवे बर चले गँउटिन, धर के डोर हँसिया।। बैला दाँरी फांद के, धान मिसे रथिया-रथिया। बौगा-बौगा धान डोहारे, हाँसत हाँसत कमिया।। चिला-पनपुरवा बिहना खाथस, रथिया तिंवर-होरा मूंगफोली। मया-मया के गोठ गोठियाथस, तैं मोर गुरतुर बोली।। हाथ म ककनी-बनुरिया, बँहाँ पहिरे नंगमोरी। कनिहा करधनी धेंच-भर हरवा, मुड़ ढाँके गोरी।। नाक म बुलाक झूलत हे, टोंड़ा गोड़ म छोरी। मूड़ म खोपा गोड गोरंगी, पैरी बाजे कोरी-कोरी।। लाली-हरियर लूगरी पहिरे, तें दिखथस अड़गड़ भोली। मया-मया के गोठ गोठियाथस, तैं मोर गुरतुर बोली।। आभार वक्तव्य प्रो० जयराम ने किया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में सुनिता मिरी, गीता कुमारी, अनिषा घृतलहरे, राजेश्वरी, हेमलता, शकुनतला राठिया, देविका राठिया, अम्बिका राठिया, रूखमणी राठिया, रेणु पटेल, अर्चना राठौर, कविता साहू, पिंकी साहू, हेमलता साहू, देवलता साहू, डिगेश्वरी दर्शन, चन्द्रकान्ति, जयंती डनसेना, शशिकला महंत, लकेश्वरी, जयप्रकाश, राजेश साहू, लीलाधर राठिया, भूपेन्द्र राठिया, जयप्रकाश, पंकज डनसेना, यामिनी राठौर, श्रेया सागर, बुबुन, छाया राठौर, अमन, मनीषा डनसेना सहित अन्य कक्षाओं के छात्रों की अहम् भूमिका रही।