रायगढ़ के हाथी कॉरिडोर पर अडानी का कोल ब्लॉकः ‘जल-जंगल-जमीन’ बचाने धरमजयगढ़ के सैकड़ों ग्रामीणों ने घेरा कलेक्ट्रेट, अंबुजा सीमेंट के पुरंगा कोल ब्लॉक की जनसुनवाई रद्द करने पर अड़े.. देखें Video

रायगढ़। धरमजयगढ़ विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पुरंगा में प्रस्तावित मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड (अडानी समूह) की कोयला खदान परियोजना के विरोध में बुधवार को सैकड़ों प्रभावित ग्रामीणों ने रायगढ़ कलेक्ट्रेट का घेराव कर जोरदार प्रदर्शन किया। आगामी 11 नवंबर को प्रस्तावित जनसुनवाई को तत्काल रद्द करने की मांग पर अड़े ग्रामीण कलेक्टर से मुलाकात की जिद पर डटे रहे और कलेक्ट्रेट भवन के सामने ही धरने पर बैठ गए।

दोपहर करीब 12:30 बजे से ही सामरसिंघा, पुरंगा और तेंदुमुरी ग्राम पंचायतों के ग्रामीण, हाथों में तख्तियां और बैनर लिए, रैली के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंचे। प्रदर्शनकारियों ने “कोल खदान बंद करो”, “जल-जंगल-जमीन बचाओ”, “विकास के नाम पर विनाश बंद करो” और “हमारे जंगल हमारी जान हैं” जैसे नारों से परिसर को गुंजा दिया। ग्रामीणों का स्पष्ट मत है कि यह परियोजना उनके जीवन, आजीविका और क्षेत्र के नाजुक पर्यावरण के लिए विनाशकारी सिद्ध होगी।

हाथी-मानव संघर्ष और पर्यावरणीय असंतुलन का डर

ग्रामीणों का मुख्य आरोप है कि इस कोल खदान के खुलने से न केवल बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई होगी, बल्कि क्षेत्र में पहले से ही गंभीर मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं और बढ़ जाएंगी। प्रदर्शनकारियों ने बताया कि धरमजयगढ़ वनमंडल में वर्ष 2001 से अब तक 167 ग्रामीणों की मौत हाथियों के हमलों से हो चुकी है, जबकि 68 हाथियों की भी जान गई है। छाल रेंज का हवाला देते हुए ग्रामीणों ने आंकड़े दिए कि यहां 54 ग्रामीणों और 31 हाथियों की मौत हुई है। उनका तर्क है कि यदि 869 हेक्टेयर की इस खदान के लिए जंगल काटे गए, तो हाथियों का विचरण क्षेत्र बाधित होगा, जिससे वे गांवों की ओर रुख करेंगे और जनजीवन संकट में पड़ जाएगा।

भूजल और कृषि पर गहरा संकट

ग्रामीणों ने इस परियोजना के भूजल और कृषि पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर भी गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं। प्रस्तावित पुरंगा अंडरग्राउंड कोल ब्लॉक परियोजना के तहत सालाना 2.25 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि अंडरग्राउंड माइनिंग के कारण ऊपर की सतह पर मौजूद सारे तालाब, कुएं और बोरवेल सूख जाते हैं, जिससे क्षेत्र में पेयजल की विकट किल्लत हो जाएगी। गर्मी के मौसम में सिंचाई असंभव हो जाएगी और जल जीवन मिशन की योजनाएं भी निष्फल हो जाएंगी। उन्होंने चेताया कि खदान से निकलने वाले पानी के कारण खेत दलदली होंगे और गर्मी में जमीन में दरारें पड़ सकती हैं, जिससे भूमिगत खदान के ऊपर की जमीन पर रबी की खेती करना मुश्किल हो जाएगा।

पेसा क्षेत्र में वन भूमि का बड़ा हिस्सा

यह परियोजना विशेष रूप से इसलिए भी विवादों में है क्योंकि यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां पेसा कानून 1996 एवं छत्तीसगढ़ पेसा कानून 2022 पूरी तरह से लागू है। प्रस्तावित खदान का कुल क्षेत्रफल 869.025 हेक्टेयर है, जिसमें से 621.33 हेक्टेयर वन भूमि है (जिसमें 314.708 हेक्टेयर आरक्षित वन शामिल है)। ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि पेसा कानून के प्रावधानों के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर वन भूमि का अधिग्रहण कैसे किया जा रहा है।

कलेक्टर से मिलने की जिद पर अड़े ग्रामीण

क्षेत्रीय विधायक लालजीत सिंह राठिया भी ग्रामीणों के समर्थन में कलेक्ट्रेट पहुंचे थे। कलेक्टर ने प्रारंभ में केवल विधायक सहित 8-10 प्रतिनिधियों को ही बातचीत के लिए बुलाया। हालांकि, बैठक के बाद ग्रामीण कलेक्टर द्वारा दिए गए आश्वासन से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने स्वयं कलेक्टर से मिलकर अपनी बात रखने की जिद पकड़ ली। जब ग्रामीण दोबारा कलेक्टर से मिलने के लिए कलेक्ट्रेट भवन की ओर बढ़ने लगे, तो पुलिस ने गेट बंद कर उन्हें रोकने की कोशिश की।

इसके बाद ग्रामीण और भड़क गए और कलेक्ट्रेट परिसर के सामने मुख्य गेट पर ही धरने पर बैठ गए। खबर लिखे जाने तक प्रदर्शन जारी था और ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक 11 नवंबर की जनसुनवाई रद्द नहीं की जाती, वे पीछे नहीं हटेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी “जल, जंगल, जमीन, पशु” को बचाने की लड़ाई जारी रहेगी।

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