सारंगढ़ में उबाल : ग्रीन सस्टेनेबल खदान के खिलाफ विधायक-सरपंच समेत सैकड़ों ग्रामीणों का फूटा गुस्सा, कलेक्टर हाय हाय के नारे गूँजे.. देखें वीडियो

  • पांच गांवों की फसल, तालाब और घरों का अस्तित्व खतरे में, ग्रामीण बोले: ‘हमारी जमीन कोई नहीं ले सकता’

रायगढ़/सारंगढ़ 22 सितंबर 2025।
छत्तीसगढ़ का सारंगढ़ इलाका इस समय बड़े आंदोलन का गवाह है। मामला ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी का है, जिसे प्रदेश का सबसे बड़ा लाइमस्टोन माइंस खोलने की अनुमति दी गई है। लगभग 500 एकड़ उपजाऊ जमीन पर यह खदान प्रस्तावित है। जिन पाँच गांवों लालघुरवा, जोगनीपाली, कपिस्दा, सरसरा और धौराभांठा की जमीन दांव पर लगी है, वहाँ पिछले 20-25 दिनों से विरोध की आग धधक रही है।

विरोध की चिंगारी से भड़की लपटें

विगत 16 सितंबर को पहली बार सैकड़ों ग्रामीण कलेक्टर कार्यालय पहुँचे। उन्होंने कलेक्टर से साफ कहा कि खदान खुलने से उनके खेत उजड़ जाएंगे, तालाब सूख जाएंगे और रोज़गार का सहारा खत्म हो जाएगा। तब से लेकर अब तक विरोध लगातार बढ़ रहा है। फरियादियों की आवाज कलेक्टर ने नहीं सुनी तो आज जन आक्रोश भड़क उठी।सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े और जनपद पंचायत अध्यक्ष ममता राजीव सिंह के नेतृत्व में प्रभावित गांवों के सैकड़ों ग्रामीण ‘कलेक्टर हाय हाय’ के नारे लगाते हुए कलेक्ट्रेट का घेराव करने पहुंचे। उनका कहना था कि ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की लाइमस्टोन माइंस से उनके हरे-भरे खेत, तालाब और गांव बर्बाद हो जाएंगे।

बिना सूचना, गुपचुप जारी हुआ एलओआई

ग्रामीणों का सबसे बड़ा आरोप है कि प्रशासन ने उन्हें भरोसे में लिए बिना खदान का एलओआई (लेटर ऑफ इंटेंट) जारी कर दिया। उन्हें तब पता चला जब कंपनी के लोग गाँव में सर्वे के नाम पर पहुँचे। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन गुपचुप तरीके से खदान की अनुमति दे रहा है। 16 सितंबर को पहले भी सैकड़ों ग्रामीण ज्ञापन लेकर कलेक्टर से मिले थे, जिसमें उन्होंने पर्यावरण, कृषि और गांवों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की बात कही थी। इसके बावजूद जनसुनवाई 24 सितंबर के लिए घोषित की गई। ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी जनसुनवाई में अपने कर्मचारियों और बाहरी लोगों को लाकर समर्थन दिखाएगी, जिससे प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी।

सबसे बड़े माइंस से बर्बाद हो जाएगा ग्रामीण जनजीवन

जानकारी के मुताबिक, यह प्रदेश का सबसे बड़ा लाइमस्टोन माइंस बनने जा रहा है। रोज़ाना यहां से लगभग 1000 ट्रक निकलेंगे, और कंपनी 700 टन प्रति घंटे क्षमता वाला विशाल क्रशर लगाने की तैयारी कर रही है। सालाना 36 लाख टन लाइमस्टोन उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग की योजना है। ग्रामीणों का कहना है कि ब्लास्टिंग की आवाज और कंपन से उनके घर, स्कूल और सड़कें हिल जाएँगी। लगातार भारी वाहनों के गुजरने से पीएमजीएसवाय की सड़कें पूरी तरह बर्बाद हो जाएँगी, और स्कूल जाते बच्चों की सुरक्षा भी गंभीर खतरे में पड़ जाएगी।

ग्रामीणों के अनुसार, पाँचों गांवों की पहचान उनकी लहलहाती फसलें और लबालब भरे तालाब हैं, यही उनकी आजीविका का मूल आधार है। खदान से उठने वाली धूल, लगातार चलने वाले ट्रक और प्रदूषण से खेती चौपट होगी, तालाब सूखेंगे और सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। कंपनी का दावा है कि 22 हेक्टेयर में ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाएगा, लेकिन ग्रामीणों का अनुभव कहता है कि पहले हुए खनन में ऐसा कोई भी कदम नजर नहीं आया।

कंपनी का रहस्यमय कनेक्शन!

सोर्सेस के अनुसार ग्रीन सस्टेनेबल कंपनी का नाम नया है, लेकिन इसके पीछे के चेहरे पुराने हैं। कंपनी के डायरेक्टर मुकेश डालमिया नलवा स्टील एंड पावर और नलवा स्पेशल स्टील से जुड़े रहे हैं। इन कंपनियों पर पहले भी राजस्व चोरी के आरोप का मामला दर्ज हो चुका है, जिसमें औद्योगिक भूमि को कृषि भूमि बताकर खरीदी-बिक्री की गई थी। लगभग 25 लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान करने का आदेश भी जारी हुआ। यही नहीं, जल संसाधन विभाग का करीब 52 लाख रुपये का बकाया आज भी दर्ज है। ग्रामीणों को विश्वास है कि जब इतिहास इतना विवादित है, तो भविष्य भी भरोसेमंद नहीं होगा।

पर्यावरणीय मंजूरी में सवाल

ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी ने सर्वे में क्षेत्र के पेड़ों की सही संख्या नहीं दर्शाई। हजारों पेड़ काटे जाएंगे। गोमर्दा अभ्यारण्य 8.25 किमी दूर दिखाया गया, पेड़ों की गिनती झूठी बताई गई है। साथ ही, वाइल्ड लाइफ बोर्ड से अभी तक एनओसी नहीं मिलने के बावजूद खदान की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है। उनका कहना है कि यह सब मिलकर दिखाता है कि कंपनी के लिए नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं।

प्रशासन जिद पर अड़ा

कलेक्टर डॉ. संजय कन्नौजे का कहना है कि ग्रामीण जनसुनवाई के दिन अपनी लिखित आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। लेकिन प्रभावितों को विश्वास है कि जनसुनवाई में फर्जीवाड़ा होगा। उनका आरोप है कि कंपनी बाहर से लोगों को गाड़ियों में भरकर लाएगी, ताकि समर्थन का माहौल बनाया जा सके।

बड़ा सवाल: किसके दबाव में हो रही जनसुनवाई?

जब पूरा इलाका विरोध कर रहा है, जब विधायक और पंचायत प्रतिनिधि जनता के साथ हैं, तब भी प्रशासन जनसुनवाई कराने पर क्यों अड़ा है? क्या विकास के नाम पर पाँच गाँव उजाड़े जाएंगे? क्या यह सच है कि उद्योगपतियों की पहुँच और ताकत जनता की आवाज़ को दबा रही है? यही सवाल अब सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक गूँज रहा है।

24 सितंबर जनसुनवाई का निर्णायक दिन

पांचों गांवों के ग्रामीणों ने कहा कि उनकी पीढ़ियों से खेती ही जीवन रही है। वे किसी भी कीमत पर जमीन नहीं छोड़ेंगे। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि वे जनसुनवाई में किसी भी तरह से कंपनी के पक्ष में सहयोग नहीं करेंगे और पूरे इलाके में विरोध जारी रहेगा। अब सारी नज़रें 24 सितंबर की पर्यावरण जनसुनवाई पर टिकी हैं। यह दिन तय करेगा कि ग्रामीण अपनी जमीन और जीवन बचा पाएँगे या कंपनी की ताकत और प्रशासन की जिद उनके भविष्य को अंधेरे में धकेल देगी।

बहरहाल आज का विरोध इस बात का सबूत है कि स्थानीय लोग अपने हक और भविष्य के लिए सशक्त हैं। प्रशासन और कंपनी के दबाव के बावजूद ग्रामीणों ने अपने खेत, तालाब और जीवन का बचाव करने की ठान ली है। सवाल यह उठता है – “क्या पांच गांवों की जमीन को उजाड़ने के लिए जनसुनवाई के नाम पर दिखावा किया जाएगा या वास्तविक जनहित को प्राथमिकता दी जाएगी। क्या विकास का मतलब जनता की जमीन और जीवन की कुर्बानी है?”