
रायगढ़। भारत-पाकिस्तान संबंधों पर जितनी चर्चा राजनीति में होती है, उतनी ही गहराई से यह भावनाओं का विषय भी है। हाल ही पहलगाम हमले में निर्दोष भारतीय नागरिकों की शहादत को देश भुला नहीं पाया था कि ऑपरेशन सिंदूर की गूंज ने हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। पूरा देश इस उम्मीद में था कि पाकिस्तान को करारा जवाब देने के बाद अब उससे किसी भी तरह का संबंध खत्म कर दिए जाएंगे। लेकिन हैरानी की बात है कि इन हालातों के बावजूद भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मुकाबला आयोजित किया गया। यह फैसला न सिर्फ अटपटा है, बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला भी है। इसके खिलाफ सोशल मीडिया में भारत-पाक मैच बायकॉट का ट्रेंड भी चल रहा है।
अब इस बारे में रायगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मिश्रा ने अपने फेसबुक पोस्ट में यही सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा –
“भारत पाक को एक ही पूल में रख दिया ताकि दोनों के बीच कम से कम 2 मैच हों। संडे को मैच रखा ताकि BCCI की ज़्यादा से ज़्यादा कमाई हो। IPL की कमाई क्या कम थी तुम्हारे लिए, जो शहीदों की लाशों से उपजे क्रोध के ज्वार को भुना कर भी पैसा कमाना पड़ रहा है?
नरेंद्र मोदी जी !! पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता… व्यापार नहीं हो सकता, ट्रेन-फ्लाइट नहीं चल सकते… तो क्रिकेट में ही कौन सी ऐसी मजबूरी थी?
बड़ी जल्दी सब भूल गए… धिक्कार है!”
मिश्रा जी के इन शब्दों में सिर्फ उनका आक्रोश नहीं, बल्कि पूरे देश की व्यथा झलक रही है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं कहते हैं कि “पानी और खून साथ नहीं बह सकते”, तो सवाल उठना लाजिमी है कि फिर क्रिकेट क्यों खेला जा रहा है? क्या क्रिकेट का पैसा शहीद नागरिकों की शहादत से बड़ा हो गया है?
क्रिकेट का यह तमाशा सरकार और बीसीसीआई दोनों पर सवाल खड़े करता है। जब पाकिस्तान से व्यापार, ट्रेन और फ्लाइट तक बंद हो सकते हैं, तो क्रिकेट को इतनी छूट क्यों? आखिर किस मजबूरी में शहीदों की कुर्बानी और देश की भावनाओं को पीछे रखकर खेल को आगे कर दिया गया?नआज ज़रूरत इस बात की है कि सरकार करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को समझे। शहीद नागरिकों का सम्मान और उनके परिजनों का दर्द किसी भी क्रिकेट मैच या आर्थिक लाभ से बड़ा है। अगर देश अपने शहीदों की कुर्बानी को याद रखे बिना पाकिस्तान से मैदान साझा करता रहेगा, तो यह आने वाली पीढ़ियों को क्या संदेश देगा? यही कि पैसा सबसे बड़ा है?
दरअसल, मिश्रा जी की यह टिप्पणी सिर्फ एक पत्रकार की राय नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के मन की पीड़ा है।

