- प्रेमचन्द जयंती के साथ सत्रीय गतिविधि की शुरूआत
रायगढ़। शासकीय महात्मा गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरसिया के हिन्दी विभाग में दिनांक 01 अगस्त 2024 को सत्र 2024-25 में होने वाली गतिविधियों की शुरूआत हो गई। सबसे पहले एम ए हिन्दी में नव प्रवेशित छात्रों के लिए इण्डक्शन कार्यक्रम रखा गया, तदुपरान्त मुंशी प्रेमचन्द जयंती का आयोजन किया गया।
सीनियर छात्रा यामिनी राठौर के मंच संचालन में शिक्षकत्रय डाॅ0 रमेश टण्डन, प्रो0 अंजना शास्त्री एवं कुसुम चैहान ने सर्वप्रथम माँ शारदे के समक्ष दीप प्रज्वलित किया। तदुपरान्त समस्त नव प्रवेशित छात्र छात्राओं ने अपना परिचय देते हुए अपनी वर्तमान कला एवं भविष्य की योजना बताई। विभागाध्यक्ष डाॅ0 आर के टण्डन ने कुल 40 सीट में शत प्रतिशत प्रवेश होने पर छात्रों को बधाई देते हुए एवं उनका स्वागत करते हुए एम ए हिन्दी प्रथम सेमेस्टर के पाठ्यक्रम, दो आंतरिक परीक्षा, एक सेमिनार, उपस्थिति, परीक्षा प्रणाली, एटीकेटी, उत्तीर्ण अंक, प्रमोशन सहित सम्पूर्ण सेमेस्टर पद्धति के बारे में छात्रों को अवगत कराया।
द्वितीय कार्यक्रम के रूप में 31 जुलाई को अवतरित उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी की जयंती मनाई गई। छात्र वक्ता के रूप में यामिनी राठौर के पश्चात् प्रथम सेमेस्टर हिन्दी की दामिनी बंजारे, तोष कुमारी साहू, मनोज कुमार बैगा, राहुल दास महंत, कौशल दास महंत ने प्रेमचंद जी के जीवन परिचय एवं रचना संसार पर प्रकाश डाला। प्रो0 अंजना शास्त्री ने प्रेमचंद जी के नामकरण, जीवन परिचय, उनके प्रमुख उपन्यासों की विशेषताओं को बताते हुए कहा कि उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि बंगला उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने दी, मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम सुझाया। इनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव है। उर्दू में इन्होंने नवाबराय बनारसी के नाम से लेखनी चलाई।
प्रो0 कुसुम चैहान ने कफन कहानी में निहित सार तत्वों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘जब मनुष्य को भूख लगती है, तो मानव में जितनी भी मानवीय संवेदनाएँ होती हैं, वह हतोत्साहित हो जाती हैं। क्योंकि उस परिस्थिति में भूख ही प्रमुखतया साधन बन जाती है।’’ और ‘‘तू बड़ा बेदर्द है बे, साल भर जिसके साथ जिंदगानी का सुख भोगा, उसी से इतनी बेवफाई।’’ अध्यक्ष की आसन्दी से डाॅ0 टण्डन ने गोदान में चित्रित मानव मूल्यों को व्यक्त करते हुए कहा कि जब गोविन्दी, खन्ना से झगड़कर, एक बच्चे को साथ लेकर घर से निकल जाती है, तब पार्क में मेहता गोविन्दी से कहते हैं, ‘‘उदासी से मौत की याद तुरन्त आ जाती है। भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है, भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है।’’ अतः छात्रों को डाॅ0 टण्डन ने यह सुझाया कि ‘‘हमें तीन चीजों से बचना चाहिए – उदासी, गुस्सा और अकेलेपन से।’’ हिन्दी विभाग के कक्ष में अंकित वाक्य का भी उल्लेख इन्होंने किया, ‘‘सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है। आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी है।’’
उमा साहू, रेनू राठिया, दुर्गेश पटेल, दामिनी बंजारे, सुनिता राठिया, पुष्पा नागवंशी, निशा सिदार, कुन्ती, राजकुमारी सिदार, प्रीति राठिया, नर्मदा राठिया, तोषकुमारी साहू, दिव्या साहू, शांति भारद्वाज, विवेक साहू, विनायक पटेल, विनयकला भारद्वाज, अमन आदि छात्रों ने उत्साह पूर्वक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यामिनी के आभार वक्तव्य के साथ जयंती का समापन हुआ।