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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ को भारतीय संस्कृति के लिए कलंक करार दिया है। इसके साथ ही अदालत ने मुस्लिम पिता और हिंदू माता से उत्पन्न बच्चे के संरक्षण का अधिकार पिता को देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि समाज के कुछ वर्गों में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ भारतीय संस्कृति में कलंक के रूप में जारी है। इस तरह का संबंध एक इम्पोर्टेड धारणा है, जो भारतीय रीति की अपेक्षाओं के उलट है।
इसके साथ ही खंडपीठ ने पहले से विवाहित अब्दुल हमीद सिद्दीकी (43) और 36 वर्षीया हिंदू महिला के ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से जन्मे बच्चे के संरक्षण का अधिकार पिता (सिद्दीकी) को देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप से बाहर आना बहुत आसान है। ऐसे मामलों में महिलाओं को घोर पीड़ा में धकेले जाने पर अदालत अपनी आंखें नहीं मूंद सकती है।
कोर्ट ने कहा- लिव इन रिलेशनशिप में धोखा खा चुकी महिला की वेदनीय स्थिति और इस रिश्ते से उत्पन्न संतानों के संबंध में कोर्ट अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती है। उच्च न्यायालय के अधिकारियों ने बताया कि खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई के बाद 30 अप्रैल को फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने कुटुम्ब अदालत के 13 दिसंबर 2023 के निर्णय से सहमति जताई और बच्चे के संरक्षण का अधिकार प्राप्त करने की हमीद की अपील खारिज कर दी।
अदालत ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप जैसी आयातित धारणा अब भी भारतीय संस्कृति में कलंक के तरह है। अधिकारियों ने बताया कि बस्तर क्षेत्र के दंतेवाड़ा जिले का निवासी अब्दुल हमीद सिद्दीकी तीन साल से एक हिंदू महिला के साथ ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में था। सिद्दीकी की पहली पत्नी से भी तीन बच्चे हैं। हिन्दू महिला ने लिव-इन में रहते हुए अगस्त 2021 में एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बाद में अचानक 10 अगस्त 2023 को महिला अपने बच्चे के साथ लापता हो गई।