- डाटा एंट्री ऑपरेटर्स को बनाया बलि का बकरा, बड़े घोटालेबाज डॉक्टर्स हर बार बच जाते हैं कार्रवाई से
रायगढ़। जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के सालाना इंसेंटिव को लेकर कोहराम मचा हुआ है। मेडिकल कॉलेज बड़ी संस्था और वहां से अधिक और स्पष्ट जानकारी नहीं मिल रही है पर जिला अस्पताल में स्थिति और खराब होती जा रही है। इंसेटिव में घोटाले में घिरते देख बड़े डॉक्टर्स ने 4 डाटा एंट्री ऑपरेटर्स को निलंबित कर दिया है जबकि इसमें इनका कोई हाथ नहीं है। सूत्र बताते हैं कि कि जिन्होंने खेल किया वह सेफ हैं और कार्रवाई से बचने के लिए निर्दोषों को बलि का बकरा बनाया गया है। तीन दिन छुट्टी के बाद सोमवार को जब फिर से इस इंसेटिव घोटाले पर जांच और चर्चा होगी तब इस मामले को बंद करने की योजना बनाई जा चुकी है और एक बार फिर से आयुष्मान कार्ड योजना (कांग्रेस राज में खूबचंद्र बघेल योजना) के बड़े घोटालेबाज अपनी जबरदस्त सेटिंग से बच जाएंगे।
कुछ बड़े सेटिंग वाले डॉक्टर्स और स्टाफ स्वास्थ्य विभाग में बड़े घोटाले करके अपनी पहुंच से आसानी से मामले को दबा देते हैं पर इस बार स्वास्थ्यकर्मियों के हक के पैसे की है जिसे जानकर कुछ लोगों ने अपने चेहतों में बंदरबाट कर लिया है। बीते सप्ताह राज्य स्तरीय टीम जांच करने के लिए जिला अस्पताल आई हुई थी। टीम के सामने कथित घोटालेबाजों ने अपना आवरण बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर जब टीम ने कुछ और लोगों से पूछताछ की तो कई तथ्य सामने आए। आगामी सोमवार को जब इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लेना है तो उसके पहले ही 4 डाटा एंट्री ऑपरेटर्स को निलंबित कर जांच की दिशा मोडऩे की कोशिश जरूर की गई है। जिला अस्पताल के एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि सीएमएचओ कार्यालय के एक अधिकारी, सीएस के खास एक अधिकारी ने इस पूरे घोटाले को रचा है और जब बात उसी पर आई है तो मामले को दबाने की पूरी कोशिश की जारी है। कायदे से इंसेंटिव की राशि जो गलत तरीके से स्वास्थ्यकर्मियों को बांटी गई है उसकी रिकवरी होनी चाहिए और जो पात्र हैं उनकी लिस्ट तैयार करके उनमें वितरित की जानी चाहिए और जो कोई भी इस घोटाले में शामिल है उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। न कि 4 मासूम डाटा एंट्री ऑपरेटर्स को बलि का बकरा बनाकर मामले को दबा दिया जाए।
सीएस, नोडल या फिर कौन है जिम्मेदार
इंसेटिव घोटाले के बारे में पूछे जाने पर आयुष्मान योजना के जिला नोडल अधिकारी तिलेश दीवान ने कहा था कि सीएस के यहां से नामों की जो फाईल आई थी उसी को आगे बढ़ाया था और सीएस (सिविल सर्जन) डॉ. आरएस मंडावी ने कहा था कि मेरे पास फाइल आती है तो आगे बढ़ा देता हूं। कमी-बेसी की जानकारी नहीं है। अब स्वास्थ्य विभाग में कौन है जो फाईल बना रहा या फिर अधिकारी जानबूझकर झूठ बोल रहे हैं। मई में सीएस डॉ. मंडावी रिटायर हो रहे हैं उससे पहले वह किसी विवाद में फंसने से जरूर बचते होंगे। कर्मचारियों ने ही बताया कि खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना के तहत इलाज के बाद सालाना प्रोत्साहन राशि दी जाती है। चिकित्सकों से लेकर स्टाफ में इस राशि को अलग-अलग प्रतिशत में बांटा जाता है। यह वही मनीष हैं जिन्हें 2 लाख 92 हजार का इंसेंटिव मिला है जबकि सीएस को 31 हजार मिला है।
विवाद के कारण
प्रोत्साहन राशि को लेकर मचे विवाद के कारणों में से पहले यह कि केस को लेकर अस्पष्टता है। सीएमएचओ कार्यालय पर मनमानी का स्टाफ ने आरोप लगाया है। कई लोगों का नाम छूटा। जिला अस्पताल में कितने केस आए इसकी जानकारी नहीं। कितने केस और किस आधार पर बंटे कोई जानकारी नहीं है। कुछ लोग तो लगभग हर केस में हैं ऐसा कैसे और कुछ को बहुत कम केस दिया गाय है। सिविल सर्जन के 4,051 केस पर 31 हजार रूपये का भुगतान किया गया है तो वहीं जतन केंद्र के संविदा में रखे गए प्रोग्राम एसोसिएट को 3,969 केस पर 2 लाख 92 हजार का भुगतान। प्रोग्राम एसोसिएट न तो किसी का मरीज इलाज करते हैं और न ही किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सहायता। अगर संस्था प्रमुख के हिस्से 0.5 प्रतिशत की दर देखें तो इस हिसाब उनका भी हिस्सा सिविल सर्जन के बराबर होता न कि उनसे करीब 10 गुना अधिक। नर्स अर्थात् सिस्टर्स में भी काफी रार मचा हुआ है। उनका आरोप है कि एक सिस्टर को 3467 केस पर 2 लाख 48 हजार यानी 71 रूपये प्रति केस तो दूसरे को 1021 केस पर 4121 रूपये अदा किये गए हैं यानी 4 रूपये प्रति केस। ऐसे कई सिस्टर्स के केस हैं जहां अनियमितता है। कुल मिलाकर इंसेंटिव बांटने में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों नें अपनी मनमानी चलाई है।
8 रुपया भी आया इंसेन्टिव
घोटोले में इंसेटिव राशि किसी सिस्टर को 100 केस तो किसी को 3800 केस तक दिया गया है और प्रति केस रूपयों के आबंटन में बंदरबांट दिख रहा है। जैसे किसी को 4 रूपये प्रति केस किसी को 80 रूपये से अधिक प्रति केस दिये गए हैं। एक नर्स का सालाना इंसेंटिव मात्र 8 रुपया ही आया है। वहीं नेत्र विभाग के डॉक्टर का इंसेंटिव 12 लाख 69 हजार आता है पर उनके विभाग के दो नर्स का इंसेंटिव एक ढेला भी नहीं आया। नाम न छापे जाने की शर्त पर एक स्टाफ डॉक्टर्स ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सामान्य ड्यूटी वाले डॉक्टर्स के साथ भेदभाव हुआ है पर कैजुएल्टी में तो आया को नर्स से अधिक इनसेंटिव मिला है। डॉक्टर-सिस्टर जो हमेशा अपने समय से अधिक कैजुएल्टी में काम करते हैं उनके केस को कम किया और इनसेंटिव भी कम दिया गया है। पारदर्शी तरीके से प्रोत्साहन राशि का वितरण हो इसके लिए नियमावली बनी है पर यहां तो इसका पालन ही नहीं हुआ है। जो सीएमएचओ कार्यालय में बने दीवान साहेब का करीबी उनको जमकर उपकृत्य किया गया है।
हमेशा से सीएमएचओ कार्यालय रहा बदनाम
आयुष्मान कार्ड योजना हो या डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना इसका संचालन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय स्थित दफ्तर से होता है। इस विभाग को देखने वाले अधिकारी और कर्मचारी वर्षों से यहां जमे हैं और आयुष्मान कार्ड के नाम पर कई गंभीर अपराधों को अंजाम दे चुके हैं बावदूज इसके बड़े लोगों के प्रश्रय के वे यहां वर्षों से जमे हैं। आम लोगों को दुत्कारकर भगाने वाला यह विभाग अपने कर्मियों की भी नहीं सुनता और सिर्फ अपने कट से मतलब होता है जिसके लिए कोई नियम कानून नहीं है।