प्रदूषण से राजधानी दिल्ली का दम समय समय पर फूलता रहता है।इसके को कारण है ,पहला यहाँ पर दिन रात दौड़ते लाखो वहां और दूसरा हरियाणा व पंजाब में समय समय पर जलने वाली पराली है।दिल्ली सरकार राज्य से उतपन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए समय समय ग्रेप जैसे सख्त कदम उठाती है।लेकिन दूसरे राज्यों से पराली जलाने से आने वाली प्रदूषण पर दिल्ली सरकार बेबस होती है।ऐसे में अब बड़ी समस्या का समाधान इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार कर लिया है।
पंजाब – हरियाणा में किसान चावल का जो बीज बोते है उसका तना मजबूत और लंबा होता है जो गिरता नहीं है,इस तरह से फसल का नुकसान नहीं होता है।इसी पैदावार 8 से 9 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है।लेकिन यह फसल 155 दिन से 160 दिन के नीच की होती है।इतनी ज्यादा दिनों की होती है की कटने के साथ अगली फसल बोन का समय आ जाता है।ऐसे में जल्दी के कारण से किसान इसे खेतो में ही जलाकर खेत खाली कर लेते है और अगली फसल बोते है। इसमें पेड़वार बम्पर होती है और लंबा होने के कारण से क़बाइन हार्वेस्टर मशीन कटाई की खेती की जाती है।इसी कारण से किसान इसी को बोते है।
इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यू के निदेशक ने बताया की दिल्ली में पराली की समस्या से राहत देने के लिए पूसा 2090 और पूसा 1824 धान की नई किस्म खोजी है।इसकी पैदावर 8.8 तन से लेकर प्रति हेक्टेयर तक है।यानि जितनी पैदावार पहले किसान कर रहे the,नई किस्म से ही उतना ही मिलेगा।यह फसल 15 दिन की है।यह बोनी फसल है,लेकिन पकने के बाद गिरेगी नहीं और क़बाइन हार्वेस्टर मशीन कटाई की जा सकती है।
इसकी बुआई जून के शुरू में की जा सकती है।125 दिन बाद सितबर आखिरी या अक्टूबर शुरू में इसकी कटाई की जा सकती है।इसी तरह किसानो को एक माह से ज्यादा समय मिलेगा।वो इस दौरान पराली जलाने के बजाए उसका निस्तारण कर सकते है।