Raigarh News : खरसिया में कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त कर पाना अब भी बीजेपी के लिए चैलेंजिंग टास्क

खरसिया। 15 सालों तक भाजपा के शासन के बाद 2018 से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। पौने पांच सालों तक सत्ता पर काबिज रहने के बाद अब जनता आगामी चुनाव में अपना कीमती वोट देने से पहले विधायक के कामकाज का आंकलन कर रही है। इन पौने पांच सालों में विधायक का काम कैसा रहा, जनता की समस्याओं के प्रति कितने संवेदनशील रहे, इन सब बातों को जबाव सीधे जनता से जानने के लिए एक वेबपोर्टल टीम अबकी बार खरसिया विधानसभा पहुंची है।

खरसिया विधानसभा छत्तीसगढ़ की हाई-प्रोफाइल सीट है। खरसिया कांग्रेस के पूर्व गृहमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे नंदकुमार पटेल के साथ-साथ भाजपा के पितृ पुरुष लखीराम अग्रवाल की कर्मभूमि है। खरसिया विधानसभा अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह के चुनाव लड़ने की वजह से पहली बार चर्चा में आई थी। उपचुनाव जीतने के बाद अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

खरसिया को कांग्रेस का अभेद गढ़ कहा जाता है। खरसिया से कांग्रेस आज तक एक भी बार चुनाव नहीं हारी है। आपातकाल के दौरान सन् 1977 में खरसिया विधानसभा के तौर पर अस्तित्व में आया था। 77 के चुनाव में पूरे देश में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद खरसिया से कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मी प्रसाद पटेल ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1980 और 1985 में फिर से जीत हासिल की। 1988 में लक्ष्मी प्रसाद पटेल ने अर्जुन सिंह के लिए सीट छोड़ दी।

1988 चुनाव में अर्जुन सिंह और भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव के बीच दिलचस्प मुकाबला का हुआ था। दिलीप सिंह जूदेव चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने भव्य आभार रैली निकाली थी। अर्जुन सिंह अंतिम वक्त में हारते-हारते चुनाव जीते थे। 1990 से लेकर 2008 के चुनाव तक खरसिया से कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल जीत हासिल करते रहे। नंदकुमार पटेल के निधन के बाद 2013 के चुनाव में उनके बेटे उमेश पटेल विधायक बने।

जातीय समीकरण पर नजर
खरसिया में कुल मतदाता की संख्या 2 लाख 518 है, जिसमें से पुरुष मतदाता 1 लाख 907 और महिला मतदाता 99 हजार 587 है। इसके अलावा थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या 24 है। खरसिया विधानसभा के जातीय समीकरण की बात करें तो कहने को तो यह सामान्य सीट है, लेकिन यहां पिछड़ा वर्ग समाज का वर्चस्व रहा है। अघरिया समाज से ही यहां का विधायक चुना जाता रहा है। अघरिया के साथ साहू समाज भी बड़ा वोट बैंक है। वहीं मारवाड़ी, अग्रवाल समाज का भी खरसिया में प्रभाव है। रोचक बात यह है कि विधायक उमेश पटेल का गृहग्राम खरसिया का नंदेली है, वहीं 2018 के चुनाव में आईएएस का रूतबा छोड़कर भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने वाले ओपी चौधरी का गृहग्राम खरसिया का बायंग है, लेकिन उनका ननिहाल उमेश पटेल का गृहग्राम नंदेली है।

कांग्रेस का एकाधिकार
खरसिया सीट पर कांग्रेस का एकाधिकार है। छत्तीसगढ़ गठन के बाद वर्ष 2003 में हुए चुनाव में कांग्रेस के नंदकुमार पटेल को 70433 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी के लक्ष्मी देवी पटेल को 37665 वोट मिले थे। 2008 चुनाव में कांग्रेस के नंदकुमार पटेल को 81497 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी के लक्ष्मी देवी पटेल को 56582 वोट मिले थे। 2013 चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के उमेश पटेल को 95470 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी के जवाहर लाल नाइक को 56582 वोट मिले थे। 2018 के चुनाव में कांग्रेस के उमेश पटेल को 94201 वोट मिले थे, वहीं भाजपा के ओपी चौधरी को 77234 वोट मिले थे।

कांग्रेस राज में तरक्की बढ़ी
खरसिया विधानसभा से कांग्रेस विधायक और भूपेश बघेल सरकार में उच्च शिक्षा, रोजगार, एवं खेल एवं युवा कल्याण मंत्री उमेश पटेल का कहना है कि बीते 5 सालों में खरसिया में चहूंमुखी विकास हुआ है। ओवर ब्रिज का निर्माण हुआ। सभी इलाकों में सड़कें बनी, पानी की समस्या का हल हो रहा है। रेलवे सुविधा बढ़ाने पर जोर है। बेहतर पुलिसिंग और कानून व्यवस्था के साथ रोजगार को बढ़ावा मिला है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी, और जीतेगी।

खरसिया को विशेष फायदा नहीं हुआ – ओपी
भाजपा नेता ओपी चौधरी का कहना है कि कांग्रेस विधायक के सरकार में मंत्री होने के बाद भी खरसिया को विशेष फायदा नहीं हुआ। लोग दुखी हैं। हाफ बिजली बिल, आवास, शराबखोरी, बुजुर्गों का पेंशन बड़ा मुद्दा है।