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छत्तीसगढ़ सरकार जल्द ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं और बोलियों को शामिल करेगी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने शिक्षा विभाग को इस पहल के लिए 18 स्थानीय भाषाओं और बोलियों में द्विभाषी पुस्तकें तैयार और वितरित करने का निर्देश दिया।
सरकार की ओर से रविवार को एक आधिकारिक बयान में यह जानकारी दी गई है। बयान के अनुसार, यह पहल एनईपी 2020 के तहत बच्चों के लिए उनकी मूल भाषाओं में शिक्षा को अधिक समावेशी व सुलभ बनाने के व्यापक दृष्टिकोण का एक हिस्सा है।
इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता को बढ़ाना है ताकि बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकें और अपनी संस्कृति से जुड़े रह सकें।
5 जुलाई को ‘शाला प्रवेश उत्सव’ (स्कूल प्रवेश उत्सव) के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान, सीएम विष्णुदेव साय ने कहा था कि इस पहल के तहत पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री का स्थानीय बोलियों में अनुवाद किया जाएगा और शिक्षकों को भी इन भाषाओं में प्रशिक्षित किया जाएगा।
स्कूल शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के लिए 18 स्थानीय भाषाओं और बोलियों में किताबें तैयार की जा रही हैं।
परदेशी ने बताया, “पहले चरण में छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादरी, गोंडी और कुडुख में पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे। इसके लिए राज्य भर के साहित्यकारों, लोक कलाकारों और संकलनकर्ताओं की मदद ली जाएगी। इसके अलावा वरिष्ठ नागरिकों और शिक्षकों से भी सहयोग लिया जाएगा।”
हाई स्कूल बगिया के प्राचार्य दिनेश शर्मा ने इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि आदिवासी बच्चों में प्रतिभा होती है। उन्होंने कहा कि स्थानीय बोली में शिक्षा से आदिवासी क्षेत्रों के अधिक से अधिक बच्चों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
एनईपी 2020 में तीन-भाषा फॉर्मूले के अनुसार, भारत के प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए: जिनमें से दो मूल भारतीय भाषाएं होनी चाहिए, जिसमें एक क्षेत्रीय भाषा शामिल होनी चाहिए और तीसरी अंग्रेजी होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जनवरी 2020 में इसी तरह की घोषणा की थी।